Hindu Vivah vidhi in Hindi

हिंदू विवाह विधि के बारे में जानकारी
हिंदू धर्म में हिन्दू विवाह पद्धति का बहुत महत्व है और ज्यादातर हिंदू धर्मावलम्बी चाहते हैं कि उनका विवाह पूरे शास़्त्रोक्त विधि से सम्पन्न हो. हिंदू विवाह की शास्त्रोक्त विधि कमोबेश एक जैसी पूरे भारत में मिलती है. यह अवश्य है कि क्षेत्र, जाति और समाज के हिसाब से रीति-रिवाजों और परम्पराओं में भिन्नता पाई जाती है लेकिन विवाह की शास्त्र विधि एक ही है.

हिंदू धर्म में विवाह विधि का इतिहास

हिंदू  धर्म में विवाह का उल्लेख सबसे पहले ग्रंथ ऋग्वेद में ही मिलता है. ऋग्वेद में विवाह सूक्त का उल्लेख है जिसमें सवितृ की कन्या सूर्य का विवाह सोम से होने का वर्णन मिलता है. अथर्ववेद में भी वैवाहिक विधि का वर्णन मिलता है जो ऋग्वेद की तुलना में ज्यादा विस्तृत और व्यापक है. सूत्रकाल आते-आते हिंदू विवाह विधि को एक निश्चित रूप और नियम मिले. पारस्कर गृह्यसूत्र और बौधायन गृह्यसूत्र में विवाह के
संस्कारों का विशद् वर्णन मिलता है.
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विवाह की शास्त्रोक्त विधि Hindu marriage rituals and their  meaning विवाह के नियम

हिंदू विवाह की शास्त्रोक्त विधि कई चरणों में सम्पन्न होती है. इसका पहला चरण वाग्दान कहलाता है. north indian wedding rituals

वाग्दान hindu pre wedding rituals

यह विवाह की प्रारंभिक विधि है जिसे आधुनिक भाषा में सगाई कहा जाता है. वाग्दान का अर्थ है, वर को वधु प्रदान करने की मौखिक प्रतिज्ञा. प्राचीन काल मे वर-वधु का चुनाव आपस मंे ही हो जाया करता था. उस समय दोनो का पारस्परिक प्रेम ही विवाह में प्रधान कारण माना जाता था लेकिन कुछ समय के पश्चात विवाह में माता और पिता का अधिकार अधिक होने लगा और वधु को प्राप्त करने के लिए पिता की अनुमति लेना आवश्यक हो गया. इस विधी का उल्लेख सबसे पहले नारद स्मृति में पाया जाता है.
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मृदाहरण 

विवाह के कुछ दिन पहले मृदाहरण की विधि की जाती है. जिसे कई स्थान पर मिट्टीकोड़ा, मिट्टी खोदने की रस्म और मिट्टी खोदा के नाम से भी जाना जाता है. 
विवाह के पहले, तीसरे, पांचवे, सातवें और नवें दिन शुभ मुहुर्त में गाजे-बाजे के साथ घर के उत्तर में या पूर्व दिशा में जाकर किसी स्वच्छ स्थान से मिट्टी लाई जाती है और उसे किसी मिट्टी के बर्तन में रखकर नया दल उत्पन्न किया जाता है.

हरिद्रा लेपन

विवाह के पहले की जाने वाली तीसरी विधि का नाम हरिद्रा लेपन है. वर तथा वधु के शरीर में हल्दी में तेल तथा सुगन्धित द्रव्य मिलाकर लगाया जाता है. इससे शरीर कोमल तथा सुन्दर लगता है. हल्दी लेपन को मांगलिक भी माना जाता है.

गणेश पूजन

विवाह के एक दिन पहले अनेक संस्कार किये जाते हैं. प्रारंभ में शास्त्रों के नियमानुसार निर्मित किये गए विवाह मण्डप में गणेश जी की प्रतिष्ठा की जाती है और उनका पूजन किया जाता है. इसी मण्डप में यज्ञीय अग्नि के लिए वेदी बनाई जाती है. इसके बाद कन्या का पिता स्नान तथा ध्यान कर स्वस्तिवाचन के लिए संकल्प करता है. इसके बाद मण्डप प्रतिष्ठा, मातृ पूजन, आयुष्यजप तथा नान्दी श्राद्ध आदि किया जाता है.

घटी स्थापना हिन्दू विवाह मंत्र

विवाह के दिन जल घटी की स्थापना की जाती है तथा मंत्र पढ़ा जाता है-
मुखं त्वमसि यन्त्राणां ब्रह्माणा निर्मितं पुरा।
भावाभावाय दम्पत्यों कालसाधनकारण्म।।
इसका अर्थ है कि तुम ब्रह्मा के द्वारा बनाये गये यन्त्रों में श्रेष्ठ हो, स्त्री तथा पुरूष में भाव एवं अभाव और काल के जानने का साधन तुम्ही हो। इस विधि में जल के कटोरे में रखकर एक जल घटी या जल घड़ी बनाई जाती है जो विवाह के उचित समय को बताती है.

वधु गृह गमन

इसे आम बोल चाल की भाषा में बारात कहा जाता है. वर अपनी क्षमता के अनुसार अपने बांधवों सहित गाजे-बाजे और अनेक मनोरंजक कृत्यों के साथ वधु के द्वार पर जाकर खड़ा हो जाता है. इसके पश्चात वधु के घर की स्त्रियां जल कलश लेकर उसका स्वागत करती हैं.

मधुपर्क

विवाह के लिए वर के आने पर उसका ससुर मधुपर्क देकर उसका सम्मान करता है. उसको बैठने के लिए श्रेष्ठ आसन देकर उसे अध्र्य प्रदान करता है. मधुपर्क विधि के बाद कन्या का पिता गन्ध, माला, अलंकार तथा यज्ञोपवीत देकर वर का पूजन करता है. इसके बाद कन्या मण्डप में लाई जाती है.

समंजन

मधुपर्क विधि के बाद कन्या का पिता वर तथा वधू को तैल स्पर्श कराता है. इस प्रथा को तेल चढ़ाना या समंजन कहा जाता है.

गोत्रोच्चार

विवाह के पहले वर तथा वधु पक्ष के पुरोहित इन दोनों के पूर्व पुरूषों का नाम तथा प्रवर का उच्चारण करते हैं. यह उच्चारण तीन बार किया जाता है ताकि उपस्थित सभी लोग वर तथा वधु के गोत्र को अच्छी तरह सुन ले और सगोत्र विवाह से बचा जा सके. स्थानीय भाषा में इसे गोत उचार भी कहा जाता है.

कन्यादान हिन्दू विवाह मंत्र

इसके बाद कन्यादान की विधि सम्पन्न की जाती है. इस विधि को करने का अधिकार सबको प्राप्त नहीं है. प्रधानतया कन्या का पिता ही इस अधिकार का उपयोग कर सकता है. उसके अभाव में शास्त्रों मे इस बात की व्याख्या की गई है कि कौन से संबंधी कन्या का दान कर सकते हैं. याज्ञवलक्य के अनुसार पिता के अभाव में पितामह, भाई और कुल को चलाने वाला प्रधान पुरूष कन्या का दान कर सकता है. कन्या
दान के समय कन्या का पिता एक मंत्र के माध्यम से निम्न संकल्प लेता है-
समस्तपितृणां निरतिशयानन्दब्रह्मले कावाप्त्यादिकन्यादान कल्पोक्तफलप्राप्तये…….द्वादशावरान द्वादशापरान्
पुरुषांश्च पवित्री कर्तुमात्मनश्च श्रीलक्ष्मीनारायणप्रीतये कन्यादानमहं करिष्ये।
इसका हिंदी अर्थ है कि- 
पूर्ण प्रसन्नता की प्राप्ति के लिए इस कन्या के द्वार उत्पन्न पुत्र से बाहर पीढ़ी पूर्व तथा बाहर पीढ़ी पश्चात अपने कुल को पवित्र करने के लिए तथा लक्ष्मी और नारायण की प्रीति के लिए मैं कन्यादान करता हूं।
कन्या को देते समय उसका पिता या अभिभावक वर के सामने यह शर्त रखता है कि धर्म, अर्थ तथा काम की प्राप्ति में इसका तिरस्कार न किया जाए. इस शर्त से वह अपने कन्या के अधिकारों को सुनिश्चित करता है. इसके बाद वर तीन बार प्रतिज्ञा करता है कि वह कन्या का कभी तिरस्कार नहीं करेगा.

कंकण बंधन

इस विधि के अनुसार वर तथा वधु के हाथ में मंत्र द्वारा एक सूत्र से बांध दिया जाता है.

लाजाहोम

इसके बाद अनेक प्रकार के होम किये जाते हैं जिनमें राष्ट्रभृत्, जप, अभ्यातान और लाजाहोम सबसे अधिक प्रसिद्ध है. इनमें से प्रथम तीन होम वर की रक्षा के लिए किये जाते हैं और अन्तिम होम का लक्ष्य समृद्धि तथा पुत्रात्पत्ति के लिए होता है. कन्या का भाई अपने हाथ से कन्या के हाथों में लाजा या धान का लावा देता था और कन्या खड़ी होकर उन लावाओं को अग्नि में समर्पित करती है. इसे स्थानीय भाषा में लावा मिलाना या लावा मेराना भी कहा जाता है.

पाणिग्रहणम हिन्दू विवाह मंत्र

इस विधि के अनुसार पति निम्नांकित मंत्र के साथ वधु का दाहिना हाथ पकड़ता है-
अमोहमस्मि सा त्र्ष, सा त्वमस्य मोहं,
द्योरह पुथिवी त्वं, सामाहमृक् त्वंः तावेह विवाहवहैः प्रजां प्रजनायावहै, संप्रियौ रोचिष्णू
सुमनस्यमानौ जीवेव शरदः शतिमिति।
इसका हिंदी अर्थ है-
मैं तुम्हारा हाथ प्रसन्नता के लिए ग्रहण करता हूं. तुम चिरकाल तक जीती रहो. भग, अर्यमा, सवितृ और पुरन्ध्री आदि देवाताओं ने तुमको हमें दिया है जिससे तुम मेरे घर पर शासन कर सको. मैं साम हूं तुम ऋक हो, मैं आकाश हूं तुम पृथ्वी हो, आओ हम दोनों विवाह करें और संतान उत्पन्न करें। हम लोगों की अनेक संतान हो तथा हम लोग चिरकाल तक जीते रहें. हम लोग सौ वर्ष तक देखें सुनें और सुखपूर्वक जीवित रहें.

अश्मारोहण हिन्दू विवाह मंत्र

अपने प्रेम तथा मैत्री में स्त्री को परिपूर्णतया विश्वस्त कराने के लिए पति वधू को पत्थर पर खड़े होने अथवा चढ़ने के लिए कहता है इसलिए इस विधि को अश्मारोहण कहते हैं।
पति के कहने पर वधू अग्नि के उत्तर की ओर दक्षिण पैर से उस पाषाण खण्ड पर चढ़ती है और पति इस मंत्र को पढ़ता है-
अर्थनामश्मानमारोहयुत्तरतोग्नेदक्षिणपादेन
आरोहममश्मानमश्मेव त्वं स्थिरा भव। 
अभितिष्ठ पृत्न्यतोऽवबाधस्व पृतनायत इति।।
इसका हिंदी अर्थ है-
तुम इस पत्थर पर चढ़ो और पत्थर के समान स्थिर बन जाओ। शत्रुओं के सिर पर पैर रखो और उन्हें दूर भगा दो।

अग्नि प्रदक्षिणा hindu marriage rituals seven pheras

इसके पश्चात वर और वधु अग्नि की प्रदक्षिणा करते हैं और वर यह मंत्र पढ़ता है-
तुभ्यमग्रे पर्यवहन्सूर्या वहतु ना सह।
पुनः पतिभ्यो जायां दाग्ने प्रजया सहेति।।
इसका हिंदी अर्थ है-
हे अग्नि! प्रारम्भ में सूर्य ने तुम्हारी ही प्रदक्षिणा की थी। आज भी तुम पुत्रों के साथ स्त्रियों को उनके पतियों को दे दो.

सप्तपदी हिन्दू विवाह मंत्र

इसके बाद सप्तपदी का विधान किया जाता है. इस विधि में पति स्त्री से उत्तर दिशा में सात पग या पद चलने की प्रार्थना करता है तथा साथ ही इस मंत्र का उच्चारण करता है.
सप्तपदानि प्रक्रामयति। एकमिषे, द्वे ऊर्जे, त्रीणि रायस्पोषाय चत्वारि मायोभवाय, पंच पशुभ्यः,
षड् ऋतुम्यः, सखे! सप्तपदा भव। सा मामनुव्रता
भव।
इसका हिंदी अर्थ है-
एक पद अन्न के लिए, दूसरा पद शक्ति के लिए, तीसरा पद धन की वृद्धि के लिए, चैथा पद सुख के लिए, पांचवां पद पशु के लिए, छठा पद ऋतु के लिए और हे सखि सातवां पद मेरे साथ एक हृदय हो जाने के लिए चलो. मेरी अनुव्रता हो जाओ.
इस सप्तपदी में जिन वस्तुओं का वर्णन किया गया है, वे सब गृहस्थ जीवन के लिए आवश्यक है. इस विधि का वर्णन हिंदू विवाह अधिनियम में भी किया गया है और इस विधि के होने पर ही विवाह कानूनी तौर पर वैध माना जाता है.
याज्ञवलक्य स्मृति में लिखा गया है कि इस विधि के सम्पन्न होने के बाद कन्या का अपने कुल से रिश्ता समाप्त होता है और अपने पति के कुल से रिश्ता जुड़ जाता है.

हृदय स्पर्श हिन्दू विवाह मंत्र

सप्तपदी हो जाने के बाद पति अपने दाहिने हाथ से स्त्री का हृदय स्पर्श करता है तथा यह मंत्र पढ़ता है-
अथास्यै दक्षिणा समधिहृदयमालभते, मम व्रते ते हृदयं दधामि,
मम चित्तमनुचित्तं ते अस्तु, मम वाचमेकमना
जुषस्व, प्रजापतित्वा नियुनक्तु मह्यामिति।
इसका हिंदी अर्थ है-
अपने व्रत में मैं तुम्हारे हृदय को धारण करता हूं, तुम्हारा चित्त मेरे चित्त में निवास करे. तुम मेरे वचनो को सुनकर अपने हृदय से प्रसन्न हो,
प्रजापति तुम्हारा संयोग मेरे साथ कराए।

सिन्दूर दान हिन्दू विवाह मंत्र

इसके पश्चात पति मंडप में उपस्थित श्रेष्ठजनों तथा सगे-संबंधियों को वधू को आशीर्वाद देने के लिए आमंत्रित करके यह श्लोक पढ़ता है-
अथैनामभिमन्त्रयते, सुमगंलीरियं वधूरिमां समेत
पश्यतः, सौभाग्य मस्यै दत्वा याथास्तं विपरेतनेति।।
इसका हिंदी अर्थ है-
यह स्त्री मांगलिक आभूषणों को पहनी हुई है. आप लोग आकर इसे देखिए और सौभाग्य प्रदान कर आप अपने घर को चले जाइए.
इसी समय सिन्दूर दान की विधि सम्पन्न की जाती है. इस विधि को कहीं-कहीं सुमंगली भी कहा जाता है.

आचार्य दक्षिणा

अंत में विवाह कराने वाले पुरोहित या आचार्य को दक्षिणा दी जाती है.

ध्रुव दर्शन

आचार्य को दक्षिणा देने के बाद वैवाहिक विधि सम्पन्न समझी जाती है लेकिन विवाह सम्पन्न होने के बाद यदि विवाह रात को सम्पन्न होता है तो तारो के उगने बाद वर कन्या का धु्रव तारा दिखलाता है और यह मंत्र कहता है.
अस्तमिते ध्रुवं दर्शयति। ध्रुवमसि, ध्रुवं त्वा पश्यामि,
ध्रुवैविध पोष्मै मयि मह्यं स्वावाद् बृहस्पतिर्मया पत्या प्रजावती
संजीव शरदः शतमिति।।
इसका हिंदी अर्थ है-
तुम स्थिर हो, मैं तुम्हें स्थिर रूप में देखता हूं, तुम मेरे साथ स्थिर होवो, बृहस्पति ने तुम्हें मुझको दिया है, अतः मुझसे संतान उत्पन्न करती हुई तुम मेरे साथ सौ वर्षों तक जीवित रहो.
इस विधि को दांपत्य जीवन में स्थिरता लाने के लिए प्रयोग में लाया जाता है.
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